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चैत्र नवरात्र 2017 | Chaitra Navratri 2017 |

चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रों का आरंभ वर्ष 28 मार्च 2017 के दिन से ही होगा । इस बार अमावस्या और नवरात्र एक ही दिन पड़ रहे हैं। ऐसे में भक्तो में भ्रम है कि वह सुबह अमावस्या के पितृ कार्य करें या फिर नवरात्र की कलश स्थापना। पंडितों के अनुसार करीब 20-22 साल के बाद ऐसा संयोग पड़ा है जब तिथियों में इस तरह का फेर देखा जा रहा है।

पंचांगों के अनुसार 28 मार्च को सुबह 8:27 बजे से चैत्र अमावस्या समाप्त हो रही है। वहीं चैत्र शुक्ल प्रतिप्रदा तिथि इसी दिन 8:28 बजे से शुरू हो रही है, जो अगले दिन यानी 29 मार्च को सुबह 6:25 बजे समाप्त हो जाएगी।

देश में में बड़ी संख्या में लोग अमावस्या को पितरों के लिए दान पुण्य करते हैं और गाय को रोटी देते हैं, जबकि नवरात्र पर कलश स्थापना होती है।
घटस्थापना :-
चैत्रनवरात्र में घटस्थापना का सर्वश्रेष्ठ मुर्हुत दोपहर 12 :08 से 12: 56 तक एवं चौघडिया मुर्हुत प्रातः 09 : 29 से 02: 04 बजे तक रहेगा ।


चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रों के आरम्भ से हिंदु नवसंवत्सर का आरंभ भी होता है। चैत्र मास के नवरात्र कोवार्षिक नवरात्रकहा जाता है। इन दिनों नवरात्र में शास्त्रों के अनुसार कन्या या कुमारी पूजन किया जाता है। कुमारी पूजन में दस वर्ष तक की कन्याओं का विधान है। नवरात्रि के पावन अवसर पर अष्टमी तथा नवमी के दिन कुमारी कन्याओं का पूजन किया जाता है
नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है। नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनों में लोग नियमित रूप से पूजा पाठ और व्रत का पालन करते हैं। दुर्गा पूजा के नौ दिन तक देवी दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ  इत्यादि धार्मिक किर्या पौराणिक कथाओं में शक्ति की अराधना का महत्व व्यक्त किया गया है। इसी आधार पर आज भी माँ दुर्गा जी की पूजा संपूर्ण भारत वर्ष में बहुत हर्षोउल्लास के साथ की जाती है। वर्ष में दो बार की जाने वाली दुर्गा पूजा एक चैत्र माह में और दूसरा आश्विन माह में की जाती है
चैत्र नवरात्र  पूजन का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है व्रत का संकल्प लेने के पश्चात मिटटी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है। इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है। घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है. तथा "दुर्गा सप्तशती" का पाठ किया जाता है। पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना चाहिए
दुर्गा पूजा के साथ इन दिनों में तंत्र और मंत्र के कार्य भी किये जाते है। बिना मंत्र के कोई भी साधाना अपूर्ण मानी जाती है। शास्त्रों के अनुसार हर व्यक्ति को सुख -शान्ति पाने के लिये किसी न किसी ग्रह की उपासना करनी ही चाहिए। माता के इन नौ दिनों में ग्रहों की शान्ति करना विशेष लाभ देता है इन दिनों में मंत्र जाप करने से मनोकामना शीघ्र पूरी होती है. नवरात्रे के पहले दिन माता दुर्गा के कलश की स्थापना कर पूजा प्रारम्भ की जाती है
तंत्र-मंत्र में रुचि रखने वाले व्यक्तियों के लिये यह समय ओर भी अधिक उपयुक्त रहता है। गृहस्थ व्यक्ति भी इन दिनों में माता की पूजा आराधना कर अपनी आन्तरिक शक्तियों को जाग्रत करते है। इन दिनों में साधकों के साधन का फल व्यर्थ नहीं जाता है। मां अपने भक्तों को उनकी साधना के अनुसार फल देती है। इन दिनों में दान पुण्य का भी बहुत महत्व कहा गया है

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