अकबर का असली रूप । Akbar's true form ।
आप ने अकबर - बिरबल के किस्से बहुत सुने होंगे, और अधिकतर लोग यह जानते है कि अकबर एक बादशाह था तो वह बहुत ही बहादुर एवं अच्छे स्वभाव का इन्सान होगा , लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है मुग़ल राजा अपनी अय्याशी के लिए जाना जाता था । रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में आम नागरिकों की बीवियां और बहनों की इज्ज़त लूटना इसके लिए एक आम बात थी।
दरअसल अकबर हर साल नौं रोजे के मेले को आयोजित करता था और वह इसी मेले में अपनी हवस की भूंख मिटाने के लिए हिन्दू नारियो की अस्मत लुटता था । नौं रोजे के मेले में पुरुषो का प्रवेश बिलकुल निषेध था ।एक बार नौं रोजे के मेले में अकबर की मुलाक़ात किरण देवी से हुई और अकबर की नीती हमेशा की तरह बिगड़ गयी ।
किरण देवी जो मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह जी के भाई शक्तिसिंह की पुत्री व बीकानेर के कुंवर पृथ्वीराज की पत्नी थी का हाथ अकबर द्वारा नौं रोजे के मेले में पकडने पर किरण देवी ने अपनी कटार निकाल कर अकबर को जमीन पर गिराकर स्वयं अकबर की छाती पर कटार रख कर खडी हो गयी और कहा नीच .........नराधम तुझे पता नहीं है मै उन महाराणा की भतीजी हु जिनके नाम से तुझे नींद नहीं आती है ।
अकबर प्राणों की भीख मांगते हुए |
राजपुताना का खून किरण देवी के रगों में दौड़ रहा था । किरण देवी बोली बोल तेरी आख़री इच्छा क्या है, अकबर का खून सुख गया उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सम्राट अकबर कभी किसी महिला के पैरो के निचे होगा । उस राजपूत वीरांगना ने अकबर को अपने सामने गिडगिडाने को मजबूर कर दिया । अकबर ने बार - बार हाथ जोड़ किरण देवी से माँ- माँ शब्द के उच्चारण से क्षमा मांगी , तब कही जाकर किरण देवी ने कहा की आज के बाद दिल्ली में कभी' नौं रोजे का मेला नहीं लगायेगा तथा कभी किसी नारी' को हाथ नहीं लगायेगा , अकबर के शर्त मानने पर उसे छोड़ दिया । यही अकबर का असली रूप है ।
इस घटना का वर्णन गिरधर आसिया द्वारा रचित सगत रासो में पृष्ठ संख्या ६३२ पर किया गया है , बिकानेर सग्रहालय में बनी एक पेंटिंग में भी इस घटना का वर्णन एक दोहे के माध्यम से किया गया है.......
किरण सिहनी सी चढी उर पर खींच कटार
भीख मांगता हाथ पसार अकबर प्राण की
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