चूण्डावतों के विशेषाधिकारो से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
चूण्डावतों कोउनकी अभूतपूर्व ईमानदारी, सेवा, निष्ठा, स्वामिभक्ति और शौर्य के लिए कई विशेषाधिकार प्राप्त थे। इनमे से कुछ अधिकारअन्य प्रथम श्रेणी उमरावों को भी प्राप्त थे।
चूण्डावतों केविशेषाधिकार -
1. अन्य प्रथम श्रेणी उमरावों के साथ सलूम्बर, अमेट, देवगढ़, बेगूँ को महाराणा के साथ नाव की सवारी का अधिकार।
2. ठिकाने के तालाब में नाव रखने और बैठने का अधिकार(सलुम्बर)
3. ठिकाने में अमर-बलेना हाथी रखने का अधिकार (सलूम्बर)
4. ठिकाने में बलेना हाथी रखने का अधिकार (देवगड़,अमेट,बेगूँ)
5. महाराणा सीख देने आंगन तक आते थे (सलूम्बर)
6. सलूम्बर का नेग(कर) रावत खुद ले।
7. मेवाड़ में सलूम्बर के व्यापारी कर मुक्त और उदैपुर में आधा कर देवे।
8. सलूम्बर में चौगान का हाथी लड़ने की छूट ।
9. ठिकाने की उठान्तरी और शिकार का हस्ताडा माफ़।
10. सलूम्बर और देवगड़ के रावत को खड़-लकड़ के कर की छूट थी, अमेट को कर था महाराणा जी ने था।
11. अमेट को गाँव का सरोपाव तथा दरिखाने का बीड़ा, जागीर की सीख मे फेंटा और बीड़ा प्राप्त करने का अधिकार था।
12. बेगूँ को बैठक का बीड़ा प्राप्त था, महाराणा की पालकी में कबानी और हाथी का निशान चंवर ढलने वाले का अधिकार था।
13. इसके
अतिरिक्त चरों चूण्डावत रावतों को अन्यप्रथम श्रेणी उमरावों के साथ घोड़े
का निशान, जुहार, ताजीम,बांह पासव, पैरों में सोना पहनने तथा नगारा
निशान,छड़ी रखने का अधिकार प्राप्त था।
14.देवगड़ और सलूम्बर को दशहरे का सरोपाव प्राप था।
15. सलूम्बर को तीज का सरोपाव प्राप्त था।
16. दशहरे
के दिन की सवारी में और गणगौर के लवाजमे में महाराणा से पहले प्रधान
सलूम्बर को बैठने का अधिकार था। यह एकप्रतीकात्मक सन्देश था की रावत लवाजमे
में पहले जा कर महाराणा की सुरक्षा कीतहकीकात कर रहे हैं।
17. सलूम्बर
का रावत अपना खुद का सिक्का भी ढलवाता था पदमशाही सिक्का, जिसे ''ढींगला''
कहते थे और उसकी जिसकी कीमत मेवाड़ी सिक्के की आधी की थी, महाराणा ने कभी
इसपर आपत्ति नहीं उठाई। इससेरावत का सम्मान स्पष्ट होता है।
18. अमेट-देवगड़-बेगूँ -सलूम्बर को दरबार की बड़ी ओल में अन्य उमरावोंके साथ बैठने का अधिकार था।
19. सलूम्बर रावत की मृत्यु पर महाराणा खुद सलूम्बर से उदैपुर ल कर उदैपुर मेंतिलक करते थे और तलवार बंधकर सामंतो में शामिल करते थे।
20. पूरे मेवाड़ में केवल कोशिथल के ठाकुर को चोगारां री कलंगी धारण करनेका अधिकार था।
21. मेवाड़
के सामंतों में पाटवी सलूम्बर के रावत को प्रधान का अधिकार चूण्डा के
गद्दी त्य्गने के बादसे वंशानुगत प्राप्त था। इसे मेवाड़ी में ''भांजगड़'' का
अधिकार कहते हैं।
22. महाराणा सांगा के समय से रावत रतन सिंह को
पट्टे-परवानो पर ''सही'' लिखने का अधिकार प्राप्त हुआ था। परवानो और पट्टों
को मान्य तभी मन जाता था जबउसपे सही का निशान हो। यह अधिकार भी वंशानुगत
रूप से भांजगड़ के साथ सलूम्बर केरावत को प्राप्त था।
23. सलूम्बर
को मेवाड़ के सभी पट्टे परवानो पर भाले का चिन्ह लगाने का अधिकार वंशानुगत
रूप से प्राप्त था। यह अधिकार राणा लाख की महाराणी हंसाबाई द्वारा चूण्डा
जी को दिया गया था तबसे चलता रहा। तत्कालीनराजनैतिक उथल-पथल के समय इस
चिन्ह से महारानी को सन्देश की सत्यता की पुष्टि होतीथी। कालांतर में मेवाड़
में गृह कलेश के दौरान मेह्ताओं के भड़काने पर भिंडर से भीविशेष चिन्ह के
अधिकार की मांग करी गयी जिससे महाराणा अमर सिंहजी द्वितीय के समयभीण्डर को
''त्रिशूल'' का चिन्ह रखने का अधिकार मिला। तब सलूम्बर रावत जो भले का
चिन्ह बनता था उसीके दोनों तरफ भीण्डर से दो फाँट बना दिए जाते थे। इसी
से कालांतर में यह कहावत चली थी की में ''भीण्डर रो भालो और सलूम्बर
री साही''
24. मेवाड़ की फ़ौज की हरावल में पूरे लवाजमे के साथ रहने का अधिकार प्राप्त था।(सलूम्बर-अमेट-देवगड़-बेगूँ)
25. वंशानुगत
रूप से सलूम्बर को महाराणा का ''तिलक'' करने का अधिकार और महाराणा की कमर
में तलवार बांधने का अधिकार सलूम्बर के रावतको प्राप्त था।
26. महाराणा
यदि किसी भी कार्यवश(तीर्थ) राजधानी या किले से बहार जाता था तोसलूम्बर
रावत को पूरे किले का अधिकार सौपा जाता था। सलूम्बर रावत महाराणा केराजमहल
में रहकर सभी कुंवारों और राजमाता की रक्षा करे। इस दौरान पूरा शासन भी
रावत के अधिकार में रहता था।
नोट - इन विशेषाधिकारों की सार्थकता
तभी है जब आप इन्हें पढ़कर अभिमानित न होवें अपितु गौरवान्वित होकर यह जाने
की आप एक महान सिसोदिया वंश के चूण्डावत कुल का हिस्सा है। एक बड़े नाम से एक
बड़ी जिम्मेदारी आपके साथ जुड़ जाती है। तो एक जिम्मेदार सिसोदिया मेवाड़ी
राजपूत बनकर अपने में छुपी समस्त बुराइयों का नाश करें और मेवाड़ की सेवा
करें। तभी पुराने एतिहासिक मान्यताओं और सम्मानों का युग युग तक हम उपयोग कर
पाएंगे औरएकलिंगजी तथा मेवाड़ दीवान महाराणा का नाम अमर कर पाएंगे और इसी से
चूण्डा जी की प्रतिज्ञा पूरी हो सकती है।
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