राजस्थान स्थापना दिवस :30 मार्च
राजस्थान स्थापना दिवस हर वर्ष 30 मार्च को मनाया जाता है। 30 मार्च,
1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर
‘वृहत्तर राजस्थान संघ’ बना था। उसी दिन को राजस्थान की स्थापना का दिन
माना जाता है।
राजस्थान की स्थापना:
राजपूत बाहुल्य प्रदेश होने से इसे राजस्थान के नाम से जाना जाता है, राजस्थान राज्य को पहले राजपुताना, रजवाड़ा, रायनाथ आदि नामों से जाना जाता था । ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आजाद करने की घोषणा के बाद जब सत्ता पलटी तो राजस्थान की स्थापना होना तय था। लेकिन उस समय राजस्थान छोटी-छोटी रियासतों में बटा हुआ था। उस समय राजस्थान में करीब 22 देशी रियासते थी।
राज्य में भी अपनी सत्ता बनाए रखने को लेकर टकराव होते रहे। आज़ादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र इनमें एक रियासत अजमेर मेरवाडा प्रांत को छोड़ कर शेष देशी रियासतों पर देशी राजा महाराजाओं का ही राज था।
अजमेर-मारवाडा प्रांत पर ब्रिटिश शासकों का कब्जा था। इस कारण यह तो सीघे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती, मगर शेष 21 रियासतों का विलय होना यानि एकीकरण कर ‘राजस्थान’ प्रांत बनाया जाना थोड़ा मुश्किल साबित हो रहा था। इन देशी रियासतों के राजा अपनी रियासतों को स्वतंत्र भारत में विलय को लेकर तैयार नहीं थे।
उनकी मांग थी कि वे सालों से खुद अपने राज्यों का शासन चलाते आ रहे हैं, उन्हें इसका दीर्घकालीन अनुभव है, इस कारण उनकी रियासत को ‘स्वतंत्र राज्य’ का दर्जा दे दिया जाए। करीब एक दशक की उठापटक के बाद 18 मार्च 1948 को राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई।
ये प्रक्रिया कुल 7 चरणों में 1 नवंबर 1956 को पूरी की गई। इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वीपी मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान के वर्तमान स्वरूप का निर्माण हो सका।
राजस्थान का एकीकरण :
18 मार्च, 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली रियासतों का विलय होकर ‘मत्स्य संघ’ बना। धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयसिंह राजप्रमुख व अलवर राजधानी बनी।
25 मार्च, 1948 को कोटा, बूंदी, झालावाड़, टोंक, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, किशनगढ़ व शाहपुरा का विलय होकर राजस्थान संघ बना।
18 अप्रैल, 1948 को उदयपुर रियासत का विलय हुआ। इसके बाद इसका नया नाम ‘संयुक्त राजस्थान संघ’ रखा गया। उदयपुर के तत्कालीन महाराणा भूपाल सिंह राजप्रमुख बने।
30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर ‘वृहत्तर राजस्थान संघ’ बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है।
15 अप्रैल, 1949 को ‘मत्स्य संघ’ का वृहत्तर राजस्थान संघ में विलय हो गया।
26 जनवरी, 1950 को सिरोही रियासत को भी वृहत्तर राजस्थान संघ में मिलाया गया।
1 नवंबर, 1956 को आबू, देलवाड़ा तहसील का भी राजस्थान में विलय हुआ, मध्य प्रदेश में शामिल सुनेल टप्पा का भी विलय हुआ।
गौरवशाली इतिहास : राजस्थान विश्व में अपने गौरवशाली इतिहास के लिए प्रसिद्ध है, राजस्थान में अपनी मातृभूमी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले अनेक वीरो व वीरांगनाओ ने जन्म लिया है । राजस्थान में अपनी आन, बान, व शान की रक्षा के लिए किये जाने वाले जौहर व शाके विश्व के इतिहास में अपनी अलग पहचान रखते है । राजस्थान की धरती के सपूतो ने हर क्षेत्र में अपनी कला, ज्ञान व वीरता का परिचय दिया है ।
राजस्थान की स्थापना:
राजपूत बाहुल्य प्रदेश होने से इसे राजस्थान के नाम से जाना जाता है, राजस्थान राज्य को पहले राजपुताना, रजवाड़ा, रायनाथ आदि नामों से जाना जाता था । ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आजाद करने की घोषणा के बाद जब सत्ता पलटी तो राजस्थान की स्थापना होना तय था। लेकिन उस समय राजस्थान छोटी-छोटी रियासतों में बटा हुआ था। उस समय राजस्थान में करीब 22 देशी रियासते थी।
राज्य में भी अपनी सत्ता बनाए रखने को लेकर टकराव होते रहे। आज़ादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र इनमें एक रियासत अजमेर मेरवाडा प्रांत को छोड़ कर शेष देशी रियासतों पर देशी राजा महाराजाओं का ही राज था।
अजमेर-मारवाडा प्रांत पर ब्रिटिश शासकों का कब्जा था। इस कारण यह तो सीघे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती, मगर शेष 21 रियासतों का विलय होना यानि एकीकरण कर ‘राजस्थान’ प्रांत बनाया जाना थोड़ा मुश्किल साबित हो रहा था। इन देशी रियासतों के राजा अपनी रियासतों को स्वतंत्र भारत में विलय को लेकर तैयार नहीं थे।
उनकी मांग थी कि वे सालों से खुद अपने राज्यों का शासन चलाते आ रहे हैं, उन्हें इसका दीर्घकालीन अनुभव है, इस कारण उनकी रियासत को ‘स्वतंत्र राज्य’ का दर्जा दे दिया जाए। करीब एक दशक की उठापटक के बाद 18 मार्च 1948 को राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई।
ये प्रक्रिया कुल 7 चरणों में 1 नवंबर 1956 को पूरी की गई। इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वीपी मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। इनकी सूझबूझ से ही राजस्थान के वर्तमान स्वरूप का निर्माण हो सका।
राजस्थान का एकीकरण :
18 मार्च, 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली रियासतों का विलय होकर ‘मत्स्य संघ’ बना। धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयसिंह राजप्रमुख व अलवर राजधानी बनी।
25 मार्च, 1948 को कोटा, बूंदी, झालावाड़, टोंक, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, किशनगढ़ व शाहपुरा का विलय होकर राजस्थान संघ बना।
18 अप्रैल, 1948 को उदयपुर रियासत का विलय हुआ। इसके बाद इसका नया नाम ‘संयुक्त राजस्थान संघ’ रखा गया। उदयपुर के तत्कालीन महाराणा भूपाल सिंह राजप्रमुख बने।
30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर ‘वृहत्तर राजस्थान संघ’ बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है।
15 अप्रैल, 1949 को ‘मत्स्य संघ’ का वृहत्तर राजस्थान संघ में विलय हो गया।
26 जनवरी, 1950 को सिरोही रियासत को भी वृहत्तर राजस्थान संघ में मिलाया गया।
1 नवंबर, 1956 को आबू, देलवाड़ा तहसील का भी राजस्थान में विलय हुआ, मध्य प्रदेश में शामिल सुनेल टप्पा का भी विलय हुआ।
गौरवशाली इतिहास : राजस्थान विश्व में अपने गौरवशाली इतिहास के लिए प्रसिद्ध है, राजस्थान में अपनी मातृभूमी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले अनेक वीरो व वीरांगनाओ ने जन्म लिया है । राजस्थान में अपनी आन, बान, व शान की रक्षा के लिए किये जाने वाले जौहर व शाके विश्व के इतिहास में अपनी अलग पहचान रखते है । राजस्थान की धरती के सपूतो ने हर क्षेत्र में अपनी कला, ज्ञान व वीरता का परिचय दिया है ।
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